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दाँत / नीलेश रघुवंशी

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गिरने वाले हैं सारे दूधिया दाँत एक-एक कर

टूटकर ये दाँत जाएंगे कहाँ?


छत पर जाके फेंकूँ या गाड़ दूँ ज़मीन में


छत से फेंकूंगा चुराएगा आसमान

बनाएगा तारे

बनकर तारे चिढ़ाएंगे दूर से

डालूँ चूहे के बिल में

आएंगे लौटकर सुन्दर और चमकीले

चिढाएंगे बच्चे ’चूहे के दाँत’ कहकर

खपरैल पर गए तो आएंगे कवेलू की तरह

या उड़ाकर ले जाएगी चिड़िया

गाड़ूंगा ज़मीन में बन जाएंगे पेड़

खाएगा मिट्ठू मुझ से पहले फल रसीले

मुट्ठी में दबाए दाँत दौड़ता है बच्चा

पीछे-पीछे दौड़ती है माँ।