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चिड़िया तुम! / रंजना जायसवाल

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चिड़िया
एक दिन तुम
नन्ही बच्ची के हठ से
घुस आई थी
मेरे घर में
साफ कराया था
मुझसे ही
तिनकों और बीट का कचरा
और देखते ही देखते
बना लिया था
घर में घर
चिड़िया
एक दिन लौटी तुम
चिड़े के साथ
नववधू -सी शर्माती
और बना लिया था
पूरे घर को
प्रणय -स्थल
चिड़िया
उस दिन जब
गूंज उठा
तुम्हारे घर में
मधुर कोलाहल
मेरा घर
ढ़ोल-तासे बजाकर
सोहर गाने लगा
चिड़िया
कुछ दिन तुम
लगातार उड़ती
जुटाती रही
बच्चों का दाना-पानी
एक माँ की तरह
अपनी परवाह किए बिना

चिड़िया
कई दिन दिखी तुम
बच्चों को
उड़ना सिखाते
दुबले कोमल बच्चे
फुदकते-फुदकते
सीख गए आखिर उड़ना

चिड़िया
एक दिन तुम
चिड़े के साथ
उदास लौटी
बच्चों के बिना
और घर
बेटी विदा हो जाने के
बाद के
सन्नाटे से
भर गया

चिड़िया
आजकल तुम
चिड़े से
वैसे ही
गुपचुप बतियाती दिखती हो
जैसे गाँव के घर में
बतियाती हैं बूढ़ी दादी
दादा से।