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बोझिल रातें / वीरा
अनिल जनविजय
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बिजली के तारों पर
पतंगें अटकी हैं
फटी हुई
मेरी शामें
जड़ी हैं-- उनमें
बिजली के तारों पर
रातों का
बहुत बोझ
हो गया है।