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अन्तर्भाव–६ / दुर्गालाल श्रेष्ठ

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प्रेमको उत्कर्ष
त्यही एउटा मात्र त्यस्तो ठाउँ,
 जहाँ पुग्दा
जति बिघ्न क्रूरलाई पनि
मानिस बन्ने अवसर मिल्छ
एक निमेष ।