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फुटकर श्लोक / गुमानी पन्त

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[एक]
आटाका अणचा लिया खसखसा रोटा बडा बाकला
फानो फट्ट गुरूँस औ गहतको डुब्का विना लूणका ।।
कालो शग जिनो बिना भुटणको पिण्डालु का नौलका
ज्यौँ ज्यौँ पेट भरी अकाल काटनी गङ्गावली रौणियाँ ।।

[दुई]
दिन-दिन खजानाका भारिका बोकनाले
शिव-शिव चलिमैँका बाल नै एककैका ।।
तदपि मुलुक तेरो छोडि नै कोइ भाजा
इति वदति गुमानी धन्य गोर्खालि राजा ।।

[तीन]
अयि दशरथ सूनो एक बिन्ती म गर्छु
तब चरणसरोजं आज सिर् माथि धर्छू ।
भवजलनिधिमेनं हेरि ढेरै म डर्छू
सपदि कुरू तथा त्वं जौन् विगी पार तर्छू ।।