Last modified on 31 मई 2017, at 15:48

गिलासहरू रित्याएर / नवराज लम्साल

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 31 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवराज लम्साल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गिलासहरू रित्याएर आफूलाई भरिरहें
त्यै मोरीलाई सम्झिएर आँखाबाट झरिरहें

पाइलैपिच्छे खतरा छ, पाइलैपिच्छे मृत्यु भेट्छु
एकै पल्ट बाँच्नलाई धेरै पल्ट मरिरहें

जहाँ टेक्छु मरुभूमि जहाँ देख्छु आगो लाग्छ
आफैं यात्री आफैं खोला आफैंमाथी तरिरहें

टेक्नेसम्म ठाउँ छैन खाने दाना-छाना छैन
ठूला-ठूला फाँटभरि जूनको सपना छरिरहें

दुई डुंगामा चढ्नेहरू कहिले वारि कहिले पारि
सङकटको धारले रेट्यो दोधारमा परिरहें