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पवितर प्रीत / नरेन्द्र व्यास

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अंधारै में
लालटेण रौ
धीमौ चानणो
म्हारो परस
फगत अंदाजै सूं
थारै मुंडै रो
इण बेळा नै
म्हारी आंख्यां
घणी उडीकी
जद आपां बणायौ
एक पवितर मेळ
आ आपां री
पवितर प्रीत है
सबदां अर बातां रौ
कांई चरित नीं।

म्है
थाम दे्वणों चाऊं
एक लम्बै आंतरै तांई
इण रात रै
इण अंधारै नै
क्यूं कै म्है राजी हूं
इण घड़ी
थारै परस पेटै।
बस थूं
ध्यान राखजे
खूटै नीं
थांरो हेत
थारी प्रीत
आ रात
अर
लालाटेण में किरासणी !