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लखण / राजू सारसर ‘राज’

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कुण सुणैं
थानैं
कुण बंटावै
खीज
मति भूल
ज्यूं
मूळ साथै
ब्याज
बियांई
बिसवास साथै
घात।
सुण, म्हारी बात
क्यूं कळपै
बिरथा ई
ईं दुनियांवी
बिणज रो
ओ कायदौ है बावळा।