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फसलां / राजेन्द्रसिंह चारण

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सियाळै री ठण्डी रात
पाणत कर’र
पाळी फसलां
घणी दोरी
गीगला ज्यूं
पण कदै‘ई
दावौ लाग’र
या भौपारी कानी सूं
भर आवै आंख्यां
ज्यूं गीगला नै
निकाळो
निगळ ज्यावै।