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सुगन / कृष्ण वृहस्पति

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कांई ठाह
कुण बीज्यो हो
म्हारै आभै मांय
बींरी हंसळी रो चांद ?
अर
कियां बंधग्यो
म्हारी भरोटी मांय
काळै नाग ?

बींरी हंसळी रो चांद
राखै रोहिड़ै रै फूलां री ख्यांत
अर म्हारी भरोटी वाळौ नाग
नीं टिपण देवै म्हानै
बारली गुवाड़।

म्हारै लीलै पडयोड़ै डील नै
आपरै पसेवां रो अरग दे'र
बा खोल देवै चौथ रा बरत।
अर गांव री बूढ़ी-बडेर्यां
भेळी हो'र
गावण लाग जावै
ब्याव रा गीत।