Last modified on 17 जून 2017, at 08:48

जब भी मिलता है बहारों से मिला देता है / आनंद कुमार द्विवेदी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:48, 17 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाल दिल का, वो इशारों से बता देता है
जब भी मिलता है, बहारों से मिला देता है

किस नज़र देखता है, हाय देखने भर से
मेरी नज़रों को नजारों से मिला देता है

जब भी आगोश में लेता है तो दरिया बनकर
प्यास को, गंगा की धारों से मिला देता है

जब कभी मुझको वो पाता है जरा भी तनहा
अपनी यादों के, सहारों से मिला देता है

कितना भी तेज़ हो तूफान वो मांझी बनकर
मेरी कश्ती को, किनारों से मिला देता है

हाँ ये सच है की खुदा, खुद नहीं करता कुछ भी
बस वो ‘आनंद’ को यारों से मिला देता है