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हलकाना / शिरीष कुमार मौर्य

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अपनी ही देह को माँद बनाए
दुबके पड़े हैं भेड़िए
भेड़ों के पक्ष में खड़े हैं भेड़िए
मुझ उनकी देहों से सड़ते हुए माँस की गन्ध आती है
टटोल लें अपनी देह
सूँघ लें अपनी काँखें
हाँका लगा लें कहीं कोई भेड़िया तो नहीं
उनके भीतर
भेड़ों की सार संभाल का काम लिया है जिन्होंने
मैं भेड़ों के नाख़ून नहीं उगा सकता
पर उनके चरवाहों की नीयत उन्हें बता सकता हूँ
उस अबूझ-सी बोली में
जिसे हलकाना कहते हैं