Last modified on 22 जून 2017, at 18:06

खुट्टी / नवीन ठाकुर ‘संधि’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 22 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जबेॅ घुरी केॅ देखलियै हम्में चारो दिश,
 बीचों गंगा में टिमटिमाय छेलै एक टा दीप।
 
 ढॉव आबेॅ कि लहर आरो तूफान,
 मतुर जलतैं रहै छै साँझ-बिहान।
 सँाच में आँच नै, जानै छै जहान,
 कठिन तपस्या ओकरोॅ छेकै पहचान।
 जेनॉ ढॉव रोॅ साथेॅ रहै छै सीप,
 
 कोय नै छोड़ै छै आपनोॅ प्राकृतिक लक्षण,
 जौनेॅ छोड़ै छै ओकरा करै छै प्राकृति नें भक्षण।
 जे चलै छै प्रकृति रोॅ सत्-पथ कथन,
 ओकरा प्रकृति नै करै कहियो दमन।
 खुट्टी केॅ रहोॅ "संधि" जाताँ रोॅ समीप