Last modified on 25 जून 2017, at 11:46

काळ / निर्मल कुमार शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देख रे इन्दर, थारी हठ सूँ काईं वे ग्यो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

बाई रो मुकलावो रे ग्यो
भायो भी भणवा सूँ रे ग्यो
ऊडीकत थारी बाट
बाबो परधाम सिधर ग्यो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

पणघट रे पीपळ री छाया
पनणिहारियाँ री मीठी बात्याँ
टाबरियाँ री भोली तूं मुस्कान ले गयो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

चौपालाँ सुनसान पड़ी है
गळीयाँ भी सूनी-सूनी है
सुपणां रो सँसार आज मसाण रे गयो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

हाळी भूखो पड्यो सो रह्यो
हळ खूँटियाँ पर टंग्यो रो रह्यो
प्यारो मोती बैल आख़िरी साँस ले रह्यो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

राजा है तो निभा धरम भी
सुख निपजे कर इस्या करम भी
दुखियाराँ री सिरगराज क्यूँ हाय ले रह्यो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !

देख रे इन्दर, थारी हठ सूँ काईं वे ग्यो
म्हारो हरियो-भरियो गाँव, आज उजाड़ रे गयो !!