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निर्गुन भजन / धिर्जे दिलदास

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हरि भजो भाई सकल त्येजिके हरी भजो भाई ।।ध्रु।।
पाँच हो तत्त्वोको सृष्टि जभाई पाप पुन्य दुनु पाई ।।
पाप धोईके सुन्थे समाई उलटा पवन चलाई ।हरि. ।।१।।
गगनके मूलमे ध्यान लगाई सुन्ये पूर्ण समाई ।।
अनहदनादकि कीरणी बाजे चित्त आनन्द लगाई । हरि.।।२।।
आनन्द पदको भेद न पाई जन्म अकारथ जाई ।।
जन्म पाइके मन हरिपद राषो जाोग जुक्ति समाई ।हरि. ।।३।।
कहे धिर्जेदिलदास यहि पद मेरा गुरु कृपा दया पाई ।।
गुरु भजि भजि पाप छुटे अभरपुर रस षाई । हरि. ।।४।।