Last modified on 26 जून 2017, at 17:03

पड़तख गवाह / संजय पुरोहित

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 26 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पुरोहित |अनुवादक= |संग्रह=था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रूंख रै हेटै
चळू करता
म्हारा दादो सा
बडो अर छोटिया काको सा
रूंख री छीयां राखती
कडूम्बै नै हरमेस ठंडो
आ बात पण पुराणी है
अब दादो सा नीं रैया
पांत्यां मांड्यो झगड़ो
कडूम्बै रा रूखाळा बण्या
रगत रा बैरी
पंचड़ा बणग्या खसम
काढयो फरमान
अर बंटग्या खेत
मंडग्या बैर
रूळग्या हेत
पांती होई च्यार
बैर पण नीं गयो।

बाप म्हारा
अब करया है
सो बरस पूरा
फेरूं होवैली
पांती च्यार
घर रै बारै ऊभ्यो रूंख
काल भी देख्यो
आज भी देख्यो
काल भी देखसी
रूंख ई है पड़तख गवाह।