Last modified on 27 जून 2017, at 14:14

ओ मन / सिया चौधरी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया चौधरी |अनुवादक= |संग्रह=थार-स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उगमता सुरजी रै
उजास में
आंख्यां चुंधीजै
ओ अंधारो
इत्तो चोखो क्यूं लागै
स्यात इणी में
लुकमीचणी खेलतो
म्हारो सुपनों ई
म्हारै मन रो
च्यानणों है।

पड़तख दीखतो खेत
म्हनै सांचो नीं लागै
सुपनां आळा
सगळा बाग-बगीचा
म्हनै सांचा क्यूं लागै?

आं जाळ-जंजाळां में
म्हारो ओ काचो मन
कठै ई
उळझ तो कोनी गयो ?