Last modified on 27 जून 2017, at 15:27

भजन / मङ्गल दास

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मङ्गल दास |अनुवादक= |संग्रह= }} {KKCatBhajan...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

{KKCatBhajan}}

यो जग रहतो कौनको आसा रे मन मुषै चेतो सवेरै ।।
पाच तत्त्व गुनतिन रहिये दस इन्द्रिय अन्यासा ।।

मन चीत्त बुद्धि अहंकार न रहिये जिमि जल बुद थतासा
यो जग रहतो कौनको आसा ।।यो जग।।१।।

अतल वितल सुतल न रहिये तलातल मै जलिको वासा ।।
सेषनाग पतालमा रहिये झिनमे भानु प्रकासा ।।यो जग।।२।।

त्रीकुटि सोहं गगन सह अवल पक करे जाह्रा वासाग ।।
इन्द्र लोक वैकुण्ठ न रहिये स्वर्ग लोक विनासा ।।यो जग।।३।।

अष्टावरण भेटे छिनमे सानै सुन्यको नासा ।।
महतत्त्व औकार न रहिये पूरुष प्रकृति विनासा ।।यो जग।।४।।

नीराकार निर्गुन निरञ्जन डात उपजत्तो जाहाके आसा ।।
उपजत वियत पुन उवजती जीमी नट षेल तमासा ।।यो जग।।५।।

नित्य धाम परम धाम जाहा नित्य हीत विलासा ।।
मंगल दास आसा ताहा लावे जलमे घटमे स्वासा ।।
यो जग रहतो कौन की आसा रे मन मुर्व चेती सवेरै ।।६।।

                 ‘जोसमनी सन्त परम्परा र साहित्य‘ बाट