Last modified on 27 जून 2017, at 22:04

बगतो जळ / धनपत स्वामी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनपत स्वामी |अनुवादक= |संग्रह=थार-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हरेक बात माथै जिद
किण भांत होयगी थूं
गैलां नै ऊंच-ओढण री जिद
थन्नै लखावै ढाळ सो सोरो
पण ऐडो सोरो कोनीं
बगतां रा पग थामणां।

थूं तो ईयां कर
पगडांडी ई थाम लै
ओढ़णियो बणाय
सावळ ऊंच-ओढ़ लै
चेतै रैवै
उण में कांटा भी हुवैला
राती कीड़्यां रा बिल्ल भी
कांई थूं जी सकैला ऐड़ै सिणगार में?
कांई थन्नै दुख नीं देवैला
किणीं रै ठिकाणैं पूगण में
भिचकी घालण सूं
पण थूं कद मानै आं बातां नैं
म्हनै ठाह है थूं काठ-भाठो नीं
बगतो जळ है निरमळ
बगसी ढाळ में ई
थांरी ढाळ म्हैं इज हूं नीं।