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मुसाण.. / दीनदयाल शर्मा

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गांम रै बारै
मुसाणा रै
असवाड़ै-पसवाड़ै
खड़्या
रूंख'र
झाडख़़ा
लागै उदास-उदास

अर
रूंखां माथै
बैठी चिड़कल्यां
निरखै
म्हां सगळां नै

गूंगी-बावळी सी
बुत बण्योड़ी
चुपचाप

तद
लागै मुसाण
फकत
माटी रौ अजायबघर ।