Last modified on 9 जुलाई 2017, at 13:53

अंगिका बुझौवल / भाग - 5

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaRachna}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बन जरेॅ, बनखंड जरेॅ
खाड़े जोगी तप करेॅ।
दीवाल, भीत

फूलेॅ नै फरै ढकमोरै गाछ।
ढिबरी

हीलेॅ डोरी, कूदेॅ बाथा।
डोरीलोटा

फूल नै पत्ता, सोझे धड़क्का।
पटपटी मोथा जाति का एक पौधा

मीयाँ जी रोॅ दाढ़ी उजरोॅ
मकरा नाँचै सूतोॅ बढ़ेॅ।
ढेरा सें सुथरी की रस्सी बाँटना

जोड़ा साँप लटकलोॅ जाय
सौंसे दुनिया बन्हलोॅ जाय।
रस्सी

छोटकी पाठी पेट में काठी
पाठीकाठी रग्गड़ खाय
सौंसे गाँव दिया जराय।
दियासलाई

उथरोॅ पोखर तातोॅ पानी
ललकी गैया पीयेॅ पानी।
दिया

करिया हाथी हड़हड़ करेॅ
दौड़ेॅ हाथी चकमक बरेॅ।
बादल बिजली

झकमक मोती औन्होॅ थार
कोय नै पावै आरपार।
आकाश और तारे

नेङड़ा घोड़ा हवा खाय
कुदकी केॅ छप्पर चढ़ि जाय।
धुआँ

जल काँपै, तलैया काँपै
पानी में कटोरा काँपै।
जल में चाँद की परछाँही