Last modified on 9 जुलाई 2017, at 18:13

घुळगांठ / मदन गोपाल लढ़ा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तो कांई कैवै हो म्हैं...
म्हैं कैयो
पण कांई कैवै हो
नीं बां नैं चैतै
नीं म्हनैं
छेकड़ अधबिचाळै ई
छूटगी बात।

बियां जद
कोनी रैयो
कैवणै-सुणणै रो कोई मतळब
सार ई कांई है
कैवा-सुणी में
फगत जबान हारणी है।

इणींज डर सूं
म्हैं धार लीवी मून
कैवणो टाळ'र
मन रै खूंणै
काठी दाब लीवी बात।

इण अबखै बगत में
जद बात उळझ'र
बणगी घुळगांठ

सोध्यां ई नीं लाधै
बात रो सिरो
कींकर सुळझै
ओ उळझाव।

कवीसरां
कांई कैवो आप...?