Last modified on 18 जुलाई 2017, at 08:10

राग निर्गुण / अगमदिलदास

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 18 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अगमदिलदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


राम हरि भजी उतारे नदिया पारके घर मोहन माया ।।टेक।।
मोहको जन्जीर तोडी तहाँ माया भुल सौ भुले आज
मत भूलो अमर हाट न गुमाऊ, मोहन माया ।।१।।
मोहके बादलु भरेऊ यहाँ तहाँ खेल सो खेल
बनी सब आई
चलिए सखेर अम्मर धाममा जाऊँ, मोहन माया ।।२।।
साँचाको साँची साेही मन बाँधी चलिय शान्त वहि देश
जहाँ आखेट चाहे नीज चाम्मा जाउँ, मोहन माया ।।३।।
सुरत की चाहारी ल्यौ हात नामशि सुन,
तुई नतान डगमग नहि सुरत साधी
परम् धाम्मा जानु यहि रीत पारी, मोहन माया ।।४।।
कहे दास अगमदिल सुनो भाई साधु
चाहे विचाहे नाथली ओघो उठी हेरुं देश
परम धाम जान परी पुढो मोहन माया