{{ |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी }}
मेरा ईश्वर मुझसे नाराज़ है
क्योंकि मैंने दुखी न रहने की ठान ली
मेरे देवता नाराज़ हैं
क्योंकि जो ज़रूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है
न दुखी रहने का कारोबार करना है
न सुखी रहने का व्यसन
मेरी परेशानियां और मेरे दुख ही
ईश्वर का आधार क्यों हों ?
पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके कि दुखी न रहने की ठान ली है ।