Last modified on 11 अगस्त 2017, at 21:24

मेरे साथ रहो / अमरेन्द्र

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:24, 11 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=मन गो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे साथ रहो
चाहे कुछ भी हो।

काँटे ही काँटे
मैंने तोड़े हैं
फूल किसी के हित
बरबस छोड़े हैं
सुख कब चाहा है
खुल कर तुम्हीं कहो
मेरे साथ रहो।

दुख-ही-दुख झेले
सुख का साथ नहीं
तपता दिन पाया
शीतल रात नहीं
जीवन जल जाए
ऐसा भी न हो
मेरे साथ रहो।

मेरे जैसा ही
कौन अकेला है
सँझबाती न एक
संध्या वेला है
बहुत सही पीड़ा
तुम भी साथ सहो
मेरे साथ रहो।