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किराएदार / अनवर ईरज

ये आलीशान मकान

जिसके हाते में

रंग-बिरंग के फूल खिले हैं

ये कभी हमारा था

और हम इसके मालिक हुआ करते थे

लेकिन

अब हम इसके मालिक नहीं

हिस्सेदार भी नहीं

किराएदार हो गए हैं

पचपन साल नौ महीने सत्ताईस दिन से

हम अपने ही मकान में

किराएदार की हैसियत से

रहते चले आ रहे हैं

मकान का

ये ख़ुद-साख़्ता मालिक

बार-बार हमें

निकाल देने की धमकियाँ दे रहा है