Last modified on 25 अगस्त 2017, at 23:47

प्रयाण / आर. चेतनक्रांति

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 25 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर. चेतनक्रांति |संग्रह=शोकनाच / आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलो प्रिये, दिखावा करें
कि दुश्मन
अपने दिल की आग में जल मरें

सारे कपड़े पहन लो
सारी पैंटें सारी शर्टें, सारी जूतियाँ सारी टोपियाँ
घर का सब सामान बीनकर
सिर पर धर लो
झाड़ो घर का कोना-कोना
इक-इक कण सोने का
चाँदी का झोली में भर लो
नई झाडू भी जिसमें चीते की पूँछ के बाल लगे हैं

सबसे ऊपर रखो हार्दिक शुभकामनाएँ
दिल की शक़्ल में कटी लाल काग़ज़ की झण्डी

रुको, जरा फ़ोन कर लेते हैं

सुनिए, हम लोग यहाँ अष्टभुजा चौराहे पर खड़े
सेल से फ़ोन कर रहे हैं
हम आपके यहाँ दिखावा करने आ रहे थे
आपकी तैयारी हो गई है न

जी हाँ, जी हाँ बस ऐसे ही सोचा
कि चलो पहले सावधान कर दें !