Last modified on 26 अगस्त 2017, at 16:53

पितृपक्ष / अर्चना कुमारी

दिवंगत पूर्वजों को तर्पण..
और जिन्दा लोग
अब भी इंतजार में हैं
कि प्यास का हल लेकर आएगा कोई
आस का फल लेकर आएगा कोई
विश्वास की ऊँगलियाँ थरथरा रही हैं
आँख इंतजार की पथरा रही है
कान मोहब्बत के घबरा रहे हैं
ये जिन्दा लोग...
साँस-साँस मरे जा रहे हैं
काश! जीते जी हम दे सकें
इन्हें प्रेम का अर्पण....
सार्थक हो उठे पितृपक्ष शायद
और संताने तृप्त हो सकें शायद
कर्तव्यों की प्यास से....
क्यों नहीं दिखती नजर को
भटकती कलपती जिन्दा रुहें....!!!