Last modified on 27 अगस्त 2017, at 02:16

हार / अर्चना कुमारी

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:16, 27 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं किस्सागो नहीं बन पाई
कहानियों के लूपहोल की तुरपाई कैसे करती
जस का तस लिखती रही

सिखाया गया था मुझे
कि ना कहना मेरा हक नहीं है
मेरे हिस्से में दर्द सहने का ही अधिकार है
बाकि सब अनधिकृत

मैंने कंठस्थ किया था पाठ
पर भूल गयी समय की मधुर करवटों में
कि ना-ना करने लगी

फिर सहसा याद आया पुराना पाठ
जब हर ना के बदले हां की चीख बढती गयी
अŠयाय दर अŠयाय पन्ने पलटे उल्टी तरफ से

रंज की हर बेल दरख्त की सूखी डाल बनी
सीख लिया हंसना भी
मन की ना और गर्दन की हां के बीच बिठाया तालमेल

सच बोल दिया, मुशकिल था जो बोलना
अब डर है गहराता हुआ
तंज के तीख़े लफ़्ज़ों में
रिश्ता हार जाता है