Last modified on 14 सितम्बर 2017, at 20:14

बिवाइयों का गठजोड़ / सुरेन्द्र रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 14 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र रघुवंशी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये जो अश्वमेघी घोड़ा जा रहा है व्यवस्था का
सम्वेदनाओं की धरती पर
कुचलते हुए मनुष्यता को
उसकी पूँछ पकड़कर घिसटते हुए
मानते रहो ख़ुद को सौभायशाली

इस ताक़तवर अश्व की टापों से उड़े
धूल के गुबार को अपनी आँखों में
आमन्त्रित करते हुए ख़ुशी मनाओ।

तुम्हें दर्ज़ होना है उनकी मान्यता और सहमतियों में
किसी ताम्र पत्र में अपना नाम अँकित कराने के लिए
गला फाड़कर जयघोष करो बारम्बार
और लीद उठाते हुए चलते रहो

मुझे इन सूखे खेतों की बढ़ती दरारों
और नँगे पाँवों की फटी विबाइयों का गठजोड़
अपनी और आकर्षित करते हुए
अपनी कहानी कहता है सविस्तार
जिसे मैं दुनिया को सुनाया करता हूँ