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तुमसे मिलते हुए / सुरेन्द्र रघुवंशी

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तुम्हें देखकर लगता है
कि दुनिया की चमक अभी कम नहीं हुई है
घिसे नहीँ हैं अभी भी विश्वास के सभी बर्तन
कि ख़ुशी होती है पर्वतों से भी ऊँची

हर बार तुम्हारी आँखों में उगते दिखाई देते हैं
उम्मीदों के अनन्त सूरज
जिनके साथ विचारों के सिन्दूरी आसमान में
तुम्हारी मुस्कुराहट का विस्तार है

तुम्हारे आगमन की ख़बर
ख़ुशियों की नदी में बदल जाती है
तुमसे मिलना किसी साम्राज्य को प्राप्त कर लेना है

तुम्हारे मुलायम सुन्दर हाथों के स्पर्श से
हज़ारों अश्व शक्ति की ऊर्जा का संचार होता है
अभाव के गड्ढों को कौन देखता है
प्रेम में दौड़ते हुए लक्ष्य विहीन

विभाजन की दीवारों को ढहाते हुए
तुम गाती हो समता और सरसता के गीत
इस कोलाहल भरे विरुद्ध समय में
कानों को जिनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है