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आबेॅ (1) / निर्मल सिंह

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भारत के दशा आबेॅ देखलोॅ नै जाय छै
वोलै-लिखै में भी मोॅन सकुचाय छै

कर्णधार देशोॅ के बोलै छै हँसी-हँसी
जनता जर्नादन केॅ खूब कहराय छै

गाँधीवादी आर्थिक नीति अच्छा रहै भारत के
डंकल आरो गैट कैन्हें भारत बोलाय छै

विदेशी तकनीक पर रोजे छै दसखत करै
आरो बेरोजगारी सें युवक छटपटाय छै

आम, जामुन, नीम, ताड़, बेल बारो बेर गाछ
सब छोड़ी कैहनें युकलिप्टस लगाय छै

भाईचारा, मनुख धर्म कहाँ चल्लोॅ गेलै
आयकोॅ संस्कृति इ जग केॅ भँसाय छै

राष्ट्र प्रेम नै रहलै केकरो में अय ‘निर्मल’
इ रं आर्यावर्त के देवे सहाय छै