रातें बीती
दिन भी बीते
रंग-राग में
फागुन बीता
नूतन अभिसारिका सी
बरसा फिर-फिर आई
महुवे की रस भरी डाल पर
कोयल कूकी
लेकिन मैंने
अपने आंगन में
जो चंदन का वृक्ष लगाया है
उस पर
कोयल क्यों नहीं कूकी ?
रातें बीती
दिन भी बीते
रंग-राग में
फागुन बीता
नूतन अभिसारिका सी
बरसा फिर-फिर आई
महुवे की रस भरी डाल पर
कोयल कूकी
लेकिन मैंने
अपने आंगन में
जो चंदन का वृक्ष लगाया है
उस पर
कोयल क्यों नहीं कूकी ?