Last modified on 12 अक्टूबर 2017, at 15:17

पेड़ सी होती है स्त्री / निधि सक्सेना

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 12 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पेड़ सी होती है स्त्री
भावों और अनुभावो की असंख्य पत्तियों से लदी
विभिन्न प्रकार की पत्तियाँ
उमंग की पंखाकार पत्तियाँ
सपनों की छुईमुई सी पत्तियाँ
अकुलाहट की त्रिपर्णी पत्तियाँ
ईर्ष्या की दंतीय पत्तियाँ
कुंठा की कंटीली पत्तियाँ
क्षोभ और प्रतिशोध की भालाकार पत्तियाँ
प्रतीक्षा की कुंताभ पत्तियाँ
स्नेह की हृदयाकार पत्तियाँ
प्रेम की एकपर्णी पत्तियाँ

पतझड़ भी एक सतत् प्रक्रिया है
भाव झड़ते रहते हैं
पुनः पुनः अंकुरित होने को
बहुधा कोई भाव मन के किसी प्रच्छन्न कोने में ठहर जाता है
फलित होकर पुष्प बनता है

सृष्टि की हर कविता इसी पुष्प से उपजी सुगंध है.