ये सुवासित रश्मियाँ
किस रोम से जागीं?
अब न जाने कब तलक
मन लहलहाएगा.
कुछ सुवापंखी सपन
उर-गगन पर झूमे,
अब खिलेंगे शीघ्र ही
मृदु-गीत मधुमासी.
एक भूली धुन ने खोली
याद की झोली.
रुक न पाएगी कहीं
अब हृदय की झोली.
आज फिर महकीं
नयन में चम्पई साँसें.
अब निगाहें खोज लगीं
नेह का उद्गम.
(प्रकाशित, विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)