Last modified on 14 अक्टूबर 2017, at 15:52

गोल रोटी / राकेश पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोज साँझ के चूल्हे पर
धधकती है थोड़ी आग
जलती है रूह और
खदबदाती है थोड़ी भूख
यह भूख पेट और पीठ के समकोण में
उध्वार्धर पिचक गोल रोटी का रूप धर लेती है

इस रोटी के जुगत में
बेलन और चकले का समन्वय बस इतना होता है कि
ऐंठती पेट में निवाले की दो कौर से
अहले सुबह रिक्शे द्रुत गति से दौड़
फिर किसी ज़हीन को खींच रहे होंगे !