बन रहे हैं आग ख़ाली पेट
आओ खेलें फाग ख़ाली पेट...
आओ
जीवन के अभाव के अबीरों से
अब उनके मुँह मल दें
याकि उनको भाँग की तरह
किसी सिल पर मसल दें
और मिलकर साथ सड़कों पर
गाएँ होली राग ख़ाली पेट...
आओ
हम उनको डूबा दें
ख़ून की हर नदी में
जो हुई है लाल
इस पूरी सदी में
तोड़कर पिंजरें-सलाखें तोड़कर के
आओ पलटें भाग ख़ाली पेट...