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आग लगी कैसे / ब्रजमोहन

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आग लगी कैसी पैसे ने भूख बढ़ाई रे
गन्ध आग में फेंक फूल का धुआँ बनाए रे
हत्यारों की आँखें जब कुछ देख न पाईं रे
सबने मिलकर अपने घर की बहू जलाई रे

बहू जली
सब ऐसे नाचे जैसे नाचे मौत
नए सिरे से
नई मौत की, फिर सुलगाई जोत

अन्धी आँखों के लालच में आँख गवाईं रे !