Last modified on 21 अक्टूबर 2017, at 16:23

संक्षिप्तकाएँ / रामनरेश पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 21 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

१.
गाँव रंग है
नगर रेखा
देह आमंत्रण है
मन स्वीकृति.

२.
सर्पमीनों के सलिल-कुंतल
बनें निर्वेद के मन व्याकरण,
प्रत्यय कहीं
उपसर्ग किंचित्.

३.
घर डर है
द्वार आशंका
आँख शील है
दृष्टि आधान.

४.
एक त्रिभुज
एक लम्ब
महासंगीत में डूब गए
तब सूरज उग आया.

५.
गाँव आलोचना है
नगर रचना.

६.
गाँव धान है
नगर पान.

७.
गाँव समुद्र है
नगर वाष्प.

८.
गाँव करुणा है
नगर श्रृंगार.

९.
गाँव साहित्य है
नगर सिद्धांत.

१०.
गाँव कुलवधू है
नगर अम्बपाली.

११.
गाँव परंपरा है
शहर प्रगति और प्रयोग.