सबसे मुश्किल है घर की लड़ाई
जिसने जीती वो हारा न भाई ...
प्यार के पंख उग भी न पाते
टूट जाते हैं मन के ये नाते
पीठ पर पाँव कैसी चढ़ाई ...
इक ख़ुशी सौ दुखों की सहेली
भाग्य पर रो रही है अकेली
ज़िन्दगी अपनी जैसे पराई ...
जलती दिये-सी और ख़त्म होती
चैन से जागती और न सोती
पी गई ख़ुद क़लम रोशनाई ...
छत गिरी सर पे घर ढह गया है
कोई अपना नहीं रह गया है
न अदालत है और न गवाही ...