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किसके लिए / रामनरेश पाठक

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किसके लिए उपजाते हो अन्न,
फल, सब्जियाँ, दूध और मेवे
अब यह सब नहीं खाया जाता

किसके लिए बजाते हो मुरली
यहाँ संगीत कोई नहीं सुनता
किसके लिए उठाई है तूलिका
यहाँ चित्र कोई नहीं देखता

किसके लिए लिखते हो गीत, कविताएँ
यहाँ साहित्य कोई नहीं पढता

किसके लिए गढ़ते हो रास्ते, यंत्र और यान
यहाँ जाने, कुछ करने में किसी की रुचि नहीं है

अभिरूचियों की मरूभूमि में यहाँ लोग
राजनीति और हिंसा की फसलें
बोते, अगोरते और काटते हैं सिर्फ
वे खाते हैं भय
सोते हैं छल
मिथुन कर लेते हैं शब्द
बस
सभ्यता और संस्कृति
किसी चिड़िया का नाम है
अब वे नहीं जानते