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गुलाब / माधुरी जायसवाल

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गुलाब में कोमल पँखुड़ी छै
हों-हों काँटो।
एत्तेॅ सुन्दर गुलाब
आरो है काँटोॅ?
आदमी के जीवनो तेॅ हेने।
धन्य!

गुलावें आदमी केॅ
जीयै लेॅ सिखाय देलकै।
संघर्ष करै के ढंग बताय देलकै।

जीवन फूले फूल नै छेकै;
काँटोॅ सें भरलोॅ छै
एकरोॅ अॅचरां
गुलाब
देखै वाला के आंखी में
बसी जाय छै,
आँखी के कोरोॅ में।
आरो देखै वाला आपनोॅ भाग
ओकरा सें जोड़ी लै छै।
बिपद झेली-झेली केॅ
जीवन सुन्दर बनावै लेली
संकल्प घुरि-घुरि दुहरावै छै।

गुलाब सुन्दर होय छै!
की होय छै
जों ओकरोॅ दामन काँटे सेॅ भरलोॅ छै।
तैहियो गुलाब हाँसे छै।
खशबू लुटावै छै।
खुशी बाँटे छै।
छवि छींटै छै।
मुसाफिर केॅ खींची
ओकरोॅ दामन में कोमल पंखुड़ी बनी
बिखरी जाय छै।
आपनें काँटा सही
दोसरा के जीवन फूल बनाय दै छै।
गुलाब,
तोहें गुलाब छेका
आकि कोय नारी?
कैन्हें नी छेदै छै ओकरोॅ अँगुरी
तोरोॅ इ काँटोॅ जे टुक-टुक ताकै छै
ओकरा, जौनै नोचै छौं तोरोॅ पँखुरी
बेचै छौं तोरोॅ खुशबू।
कैन्हें नी रेतै छोॅ आपनोॅ काँटोॅ?
कहिया ताँय सेजे पर सजबा?