Last modified on 4 नवम्बर 2017, at 21:16

हिरोशिमा की बच्ची / नाज़िम हिक़मत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 4 नवम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं आती हूँ और खड़ी होती हूँ हर दरवाज़े पर
मगर कोई नहीं सुन पाता मेरे क़दमों की ख़ामोश आवाज़
दस्तक देती हूँ मगर फिर भी रहती हूँ अनदेखी
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं

सिर्फ़ सात साल की हूँ, भले ही मृत्यु हो गई थी मेरी
बहुत पहले हिरोशिमा में,
अब भी हूँ सात साल की ही, जितनी कि तब थी
मरने के बाद बड़े नहीं होते बच्चे

झुलस गए थे मेरे बाल आग की लपलपाती लपटों में
धुँधला गईं मेरी आँखें, अन्धी हो गईं वे
मौत आई और राख में बदल गई मेरी हड्डियाँ
और फिर उसे बिखेर दिया था हवा ने

कोई फल नहीं चाहिए मुझे, चावल भी नहीं
मिठाई नहीं, रोटी भी नहीं
अपने लिए कुछ नहीं माँगती
क्योंकि मैं मर चुकी हूँ, मर चुकी हूँ मैं

बस इतना चाहती हूँ कि अमन के लिए
तुम लड़ो आज, आज लड़ो तुम
ताकि बड़े हो सकें, हँस-खेल सकें
बच्चे इस दुनिया के.

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल