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भावना / राजीव रंजन

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निश्कपट हृदय का पट खोल,
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
प्यार का स्पर्श पा तेरा
छुई-मुई सा वह सिमट गयी।
वर्शों से जमीं थी जो हृदय
पर, ताप का एक एहसास
पा पल में पिघल गयी।
धीरे से हृदय में मेरे पायल
बन रून-झुन सा थिरक गयी।
अभी-अभी हरे हुए मन
के दुर्वा-दल पर, वह
शबनमी बूँद बन बिखर गयी।
निश्कपट हृदय का पट खोल
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
हृदय के एक कोने में सोयी
बुझी सी आग को फिर उपट गयी।
संवेदना की आग में पिघल
भावना मेरी अन्तर से निकल
पलकों पर आ ठिठक गयी।

घटा बन आँखों को नम कर
न जाने यथार्थ के वियावान
में कहाँ भटक गयी।
भावना भोली न जाने नींद
बन आँखों से कब उचट गयी।
निश्कपट हृदय का पट खोल
भावना मेरी निकल बाहर
तुमसे जा लिपट गयी।
प्यार का स्पर्श पा तेरा
छुई-मुई सा वह सिमट गयी।