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न्याय-पुरुष / शुभा

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एक

न्याय के तमाम सिद्धान्त उन्होंने ही बनाए हैं
व्यवहार में कसौटियाँ भी तय की हैं उन्होंने ही

हमारे विचार परख कर वे ही सिद्ध करते हैं
उन्हें सही या ग़लत

हमारे विचारों के लिए कोई और कसौटी नहीं है
क्योंकि हमारे लिए कोई सिद्धान्त नहीं है
और व्यवहार भी हम तय नहीं करतीं

दो

अगर हम एक न्यायसंगत दुनिया बनाएँ
तो सबसे ज़्यादा मुश्किल खड़ी करेंगे न्याय-पुरुष

न्याय-पुरुष सबसे ज़्यादा सोखते हैं नई ऊर्जा को
नई बातों के मर्म को वे इस तरह भेदते हैं
जैसे एक जैविक संरचना समाप्त करना चाहते हैं पृथ्वी से

उनके औज़ारों को निरस्त करना एक सबसे ज़रूरी काम है
वे अक्सर एक आदर्श की तरह सामने आते हैं।

तीन

न्याय-पुरुषों ने ही सबसे पहले अन्याय को औचित्य प्रदान किया
उन्होंने जनतन्त्र को स्थापित करते हुए दासता को वैध बनाया

इस बात को हम स्त्रियों से अधिक और कौन समझ सकता है
हमें अक्सर एक मामूली-सी बात करने के लिए भी न्याय-पुरुषों से लोहा लेना
पड़ता है

भयानक बात ये है कि वे बहुत बार हमें अपने लगते हैं
हमारे अकेलेपन का कोई अन्त नहीं
और हम पर होने वाले अन्याय को नापने का कोई पैमाना नहीं
इस तरह हमें बार-बार निहत्था करते हैं न्याय-पुरुष।