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मछुवारे / स्वप्निल श्रीवास्तव

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मछुवारों से उनके तालाब छीन
लिए गए है
मछलियाँ कुछ ताक़तवार लोगो के
कब्ज़े में आ गई हैं

मत्स्य-कन्याएँ उनके हरम में
पहुँचा दी गई हैं
मांँसाहारियों की जीभ पर
चढ़ गया है, हिंसक स्वाद

मछुवारों की बस्तियों में छाया
हुआ है सन्नाटा
न उनके पास नावें हैं, न जाल
हिम्मत तो पहले से टूट चुकी है

नदियाँ उदास हैं
हतप्रभ हैं झीलें

चारों तरफ़ फैल गए हैं आखेटक
वे बच्चा- मछलियों पर भी नही
दिखाते दया

समुद्र के पास नदियों की कई
करूण कथाएँ हैं
लेकिन उन्हें भी रौंद रहे हैं
उनके जहाज़।