Last modified on 27 दिसम्बर 2017, at 14:25

मेरी संगिनियों / कैलाश पण्डा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 27 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अये, मेरी संगिनियों
मैं तुम्हारे स्वरूप को जानता हूं
मेरी यह देह
तुम्हारी आश्रय दाता जो है
तुम मेरे भोग का साधन भी हो
मेरा यह मन
तुम्हारा सहायक जो है
मैंने तुम्हारे पाशों में पड़कर
स्वयं को भूला दिया है
मै तुम्हारे कृत्यों से
अनभिज्ञ नहीं हूं
तुम मेरे शरीर का क्षरण कर
समस्त वृत्तियों को जागृत कर
मेरे अन्तस् का भक्षण कर
मुझे रौंदती हो
हे इन्द्रियों तुम देखना
जब पूजन होगा मेरे अन्तर में
तब दूर चले जाने को मजबूर
ढोल शंख-नगाड़े घण्टियों की ध्वनि
असहनीय होगी तुम्हारे लिए।