Last modified on 1 जनवरी 2018, at 01:41

दिवाकर / सुकुमार चौधुरी / मीता दास

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:41, 1 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुकुमार चौधुरी |अनुवादक=मीता दास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक डाकिया आकर बदल सकता था
मेरा जीवन।
जबकि मेरे जीवन में किसी अलौकिक
डाकिये की कहानी नहीं है
जब भी मुझे समय मिलता है मैं उस
बिन देखे डाकिये की बात सोचता हूँ
उसकी तस्वीर बनता हूँ

शीर्ण देह, ख़ाकी पतलून
काँधे पर झोले में न जाने कितने वर्णमय अनुभूतियाँ
सुसाइड झील के करीब से वह आएगा
साइकल पर सवार
और घण्टी बज उठेगी ट्रन - ट्रन
ठण्ड की बयार छेड़ेगी उसके रूखे बालों को

कॉपी के पन्नों पर कट्ट्स-पट्टस काटता
कुछ इसी तरह की छवि
और अविकल कॉपी के पन्नों जैसे
उठ कर आता है सुबह का अख़बार वाला

मैं उसे शीर्ण देख, देख फटा पतलून
उसके बाद हेड लाइनों पर आँखे फेरते-फेरते
एक वक़्त कड़वे मुँह से बोल उठता —

क्या तुम्हें डाकिया बनने
की इच्छा नहीं है दिवाकर।

मूल बांग्ला से अनुवाद — मीता दास