सम्बन्ध / कुमार मुकुल

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उफ़ कितनी गरमी है आजकल

तुम होतीं तो पसीना पोंछती कहतीं

कितनी गरमी है-- उफ़

नहा लेते फिर तो अच्छा होता

मैं कहता

अच्छा होता कि हम

अलग बिस्तरों पर सोते आज

तब तुम मेरे सिर या छाती पर

छलक आया पसीना पोछतीं

फिर चूम लेतीं

नाराज़ होता मैं

कि कितनी गरमी है आज

और बाँहों में उठा

पास के बिस्तर पर लिटा देता

फिर बैठ जाता पास ही

कि अब सोओ तुम

मैं पंखा झल दूँ

तुम्हें नींद आने को होती

कि चूम लेता मैं

नाराज़ होतीं तुम

और मुझे पास खींचती

कहतीं

जाओ सोओ ना।

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