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चाँदनी / लावण्या शाह

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चाँद मेरा साथी है.. और अधूरी बात सुन रहा है, चुपके चुपके,

मेरी सारी बात!

चाँद मेरा साथी है..


चाँद चमकता क्यूँ रहता है ? क्यूँ घटता बढता रहता है ? क्योँ उफान आता सागर मेँ ? क्यूँ जल पीछे हटता है ? चाँद मेरा साथी है.. और अधूरी बात सुन रहा है, चुपके चुपके,

मेरी सारी बात!


क्योँ गोरी को दिया मान?

क्यूँ सुँदरता हरती प्राण?

क्योँ मन डरता है, अनजान?

क्योँ परवशता या अभिमान?

चाँद मेरा साथी है.. और अधूरी बात सुन रहा है, चुपके चुपके,

मेरी सारी बात!

क्यूँ मन मेरा है नादान ?

क्यूँ झूठोँ का बढता मान?

क्योँ फिरते जगमेँ बन ठन?

क्योँ हाथ पसारे देते प्राण?

चाँद मेरा साथी है... और अधूरी बात सुन रहा है, चुपके चुपके,

मेरी सारी बात!